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सफर - मौत से मौत तक….(ep-34)






नंदू सड़क किनारे अकेले बैठा था, हाथ मे एक बोतल थी, सड़क किनारे एक छोटे से पत्थर के टीले में रात के साढ़े नौ बजे बैठकर नंदू आती जाती गाड़ियों को ध्यान से देख रहा था। और आते जाते लोगो को भी देख रहा था। उसके बगल में नंदू अंकल भी उदास बैठे थे अपनी ये हालत देखकर, ये वो नजारे थे जो उस रात देखकर, अगली सुबह वो भूल चुका था। रात गयी तो बात गयी……
नंदू इस सड़क में हर तरह के लोगो को आते जाते देख रहे थे….इन्ही सड़को में हर तरह के लोग पलते बढ़ते है, कभी दो लड़के लडकिया इतनी रात को एक दूसरे के बांह थामे चलती नजर आ रही थी, तो कभी एक घर की जिम्मेदारी उठा रही अकेली लड़की फोन पर घरवालो से कहती कि बस ऑटो का वेट कर रही, आज आफिस में देर हो गयी थी…….इसी बीच कुछ संस्कारी लड़के बाइक रोककर उसे छेड़ते हुए कहते है-

"मैडम लिफ्ट…"
नेक्स्ट…….
"कभी हमसे भी लिफ्ट ले लिया करो मैडम"
नेक्स्ट……
"ओ लाल दुप्पट्टे वाली अपना नाम तो बता"
नेक्स्ट….
"क्या आपने भी इस तरफ जाना है। मैं छोड़ दु क्या"

"जी नही…." लड़की किसी किसी को ही जवाब देती थी जो थोड़ा इज्जत से बात करता था। क्योकि किसी पर भी भरोसा नही किया जा सकता है।

लड़की उन सबको इग्नोर करते हुए ऑटो के आते ही चिल्लाती- "ऑटो….ऑटो"

फिर ऑटो रुकती और वो ऑटो में बैठकर घर की तरफ निकल पड़ती।

नंदू इतनी पी चुका था कि उसे गर्दन उठाने की भी ताकत नही थी, ठंड का मौसम था, फिर भी सिर्फ कमीज में नंदू बैठा हुआ था। लेकिन नंदू अंकल ठंड से ठिठुर रहा था।
नंदू  और नंदू अंकल एक साथ ये नजारे देख रहे थे,

एक बुजुर्ग की तरफ उन दोनों का ध्यान गया…. एक बुजुर्ग एक हाथ मे लाठी लिए चल रहा था, उसकी बाई तरफ उसका हाथ पकड़े एक बुढ़िया भी थी, शायद दोनो खाना खाकर सैर करने जा रहे होंगे।
उन्हें देखकर नंदू चिल्लाया- "क्यो……??? क्यो अंकल??? बच्चे छोड़ गए क्या तुम्हें भी….दोनो एक दूसरे को कभी मत छोड़ना, बहुत किजमत……किस……किस्मत वाले हो तुम….तुम्हारी बुढ़िया जिंदा है…." हकलाते हुए लड़खड़ाती जुबान की आवाज सुनकर दोनो ने उस शराबी की तरफ देखा और आगे बढ़ गए।

"बड़ा भाव खाता है बुड्ढा….किस्मत वाला जो है….काश मेरी गौरी भी मेरे साथ होती….हम दोनों भी ऐसे ही चलते हाथ मे हाथ रखकर" नंदू ने कहा।

नंदू अंकल आज कुछ भी सोच समझ नही पा रहे थे। बस कभी नंदू को देखते तो कभी आते जाते लोगो को।

थोड़ी देर तक उस सड़क से कोई नही गुजरा, नंदू रो रहा था, ये उसके अंदर की फीलिंग थी या शराब का नशा…. शायद दोनो मिक्स ही थी….लेकिन एक शराबी को रोता हुआ देखकर किसी को दया नही आती जबकि उसपर गुस्सा आता है, इसलिये नंदू को रोता देखकर आने जाने वाले लोग नजर फेर लेते और आगे बढ़ जाते।

अचानक नंदू के कंधे पर किसी ने हाथ रखा। और उसी वक्त नंदू अंकल के कंधे पर भी एक हाथ रखा गया। दोनो एक साथ हैरान हुए और एक साथ उन्होनें मुड़कर  अपने कंधे पर रखे हाथ की तरफ देखते हुए उसके चेहरे की तरफ गर्दन घुमाई।

नंदू के कंधे में समीर का हाथ था….
नंदू अंकल के कंधे में भला कौन हाथ रख सकता था, उसके कंधे में यमराज ने हाथ रखा था… यमराज को देखते ही नंदू अंकल उठ खड़े हिई और रोते हुए यमराज को गले से लगा लिया।

नंदु ने जब अपने बेटे समीर की तरफ देखा तो उसका हाथ अपने कंधे से नीचे फेंक दिया और उठने की कोशिश करने लगा।
समीर ने देखा पापा को उठने की ताकत भी नही है तो उसने उनका हाथ पकड़ा और कहा - "पापा घर आने की भी होश नही है आपको….और ये क्या हाल बना रखा है….कपड़े देखो अपने"

नंदू ने उसका हाथ भी छोड़ दिया और कहा- "उठ तो रहा हूँ बेटा, उठने दे मुझे….अभी तेरा बाप अपने पैरों पर उठ सकता है….अभी ट…….टटुटे नही है ये"

"पापा प्लीज….नही उठ पाओगे आप….चलो जल्दी मेरा हाथ पकड़ों और मेरे साथ घर चलो" समिर ने धीरे से कहा।

गुस्सा तो समीर को बहुत आ रहा था। लेकिन समीर सड़क में तमाशा नही बनाना चाहता था। बस एक बार घर ले चलूं, उसके बाद सुबह लगाऊँगा क्लास, अभी बोलकर कोई फायदा नही" समीर सोच रहा था।

"ये क्या हाल बना दिया अंकल आपने" यमराज ने नंदू अंकल से पूछा।

"बस यूं ही, मत्ती में काल बैठा था….खुद परेशान रहा और अपने बेटे को भी परेशान किया।" नंदू अंकल ने कहा।

"परेशानी की वजह तो वो खुद ही है" यमराज ने कहा।

नंदू अंकल ने यमराज की बात में ध्यान नही देते हुए नंदू और समीर की तरफ फोकस किया हुआ था।

नंदू ने लटपटाते हुए जीभ से हकलाते हुए कहा "किसका घर……म…मेरा घर नही है वो….घर जैसा कुछ है ही नही वहाँ"

समीर ने पापा को उनके पैरों पर खड़ा किया और उनके हाथ से बोतल छीनकर एक किनारे फ़ेंकते हुए कहा- "वो आपका ही घर है पापा….मेरा और कौन है यहाँ, जो मेरा है वो सब आपका ही है"

"बस भी करो वकील साहेब….वो घर काटने को आता है मुझे….उस घर के बाहर कितना सुकून है, कितना आनंद है, लेकिन वहां….एक कमरे में रहहकर दम घुटता है मेरा" नंदू बोल रहा था और समीर एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल रहा था।

"दीवारें ही है जो मुझसे बात करती है, इंसान तो कोई बतियाता नही मुझसे.….क्या करूँ वहाँ जाकर" नंदू बोला।

समीर अपने पापा की बाते सुनते हुए उन्हें गाड़ी की तरफ ले गया।

"पता है मेरा सपना क्या था….मेरा सपना था कि एक सुंदर सी बहु….मेरे उठने से पहले मेरे लिए चाय बना लाएगी….मुझे समय समय पर दवाई खिलाएगी….मेरे साथ बैठेगी मुझसे बात करेगी, मैं उसे अपने पुराने किस्से सुनाकर अपने दिल का बोझ हल्का करुंग, उसे अपनी बेटी बनाकर रखूंगा….लेकिन मेरी बहु….वो अंग्रेजन जहर ही दे दे उतना बहुत है, जहर भी देने को नही राजी….क्या सोचा था क्या हो गया…." नंदू बड़बड़ाये जा रहा था।
समीर सुन तो रहा था लेकिन वो पापा की बात पर गौर तब करता अगर ये बात बिना पिये बोली होती। पीकर तो आदमी भौंकता रहता है, ये विचार नंदू की बाते समीर को सीरियसली नही लेने दे रही थी।

समीर ने गाड़ी का पिछे का दरवाजा खोला और पीछे को शीट में पापा को बैठा दिया, नंदू अंकल और यमराज भी पीछे बैठ गए।

समीरागे बैठा और गाड़ी चलाने लगा, तभी इशानी का फोन आया- "मिले की नही??"  इशानी ने सवाल किया।

" मिल गए, मैं लेकर आ रहा हूँ इन्हें" समीर ने कहा।

"कौन सी नाली में मिले?" इशानी ने सवाल किया।

समीर पहले ही बहुत ग़ुस्से मे था उपर से इशानी की ये बातें भी उसे चुभ रही थी।

"यू शटप……." कहते हुए समीर ने फोन काट दिया।

नंदू पीछे शीट में गुनगुना रहा था-

फूलों से चहरा तेरा……कलियों सी मुस्कान है….
रंग तेरा देख के रूप तेरा देखके कुदरत भी हैरान है।

ये गाना थोडी देर पहले ही नंदू ने कही बजते हुए सुना था, तब से बस यही दो लाइन याद थी इन्ही को रिपीट कर रहा था।


*****


अगली सुबह

"बेशर्मी की हद होती है……एक तो उतनी रात घर नही आये, हम लोग ढूंढते हुए परेशान रहे, ऊपर से खाना मांगा और खाया नही… चार बार गर्म करवाई, और उसके बाद रात भर पता नही किसका चेहरा याद आ रहा था…… फूलों से चेहरा तेरा……चिल्ला चिल्ला के कान ही फोड़ दिए।" इशानी ने पहले से शर्मिंदा बैठे नंदू को और लज्जित करते हुए कहा।

"अब नही करूँगा, अब नही करूँगा….दो महीने से यही सुनने को मिल रहा है।  लेकिन शर्म तो शायद बेच ही दी है" समीर बोला।

यमराज ने ये सब देखा और नंदू अंकल से कहा- "सही तो कह रहा है बेटा….क्यो चले जाते हो इतना कहने के बाद भी….वो दोनो आपकी भलाई की बात कर रहे है….शराब सिर्फ आपकी इज्जत ही नही आपके इस मिट्टी के शरीर को भी खराब कर रहा है" यमराज बोला।

"पता नही यार क्यो?.….मुझे खुद समझ नही आ रहा कि क्यो चला जाता हूँ मैं….बहुत कोशिश करता हूँ खुद को रोकने की लेकिन शाम होते ही मुझे घबराहट होने लगती है, और मन घर मे नही लगता….एक तलब लगती है कड़वे पानी की……" नंदू अंकल ने दुखी स्वर मे कहा।

"तो घर पर ले आओ एक बोतल….आराम से बैठकर इज्जत से पियो जरूरी थोड़ी की वहीं से पीकर आना है" यमराज ने कहा।

"अब तुम भी मुझे ही कोसो….उन दोनों ने कोई कसर छोड़ी है क्या"  नंदू अंकल बोले।

"जो बात हमे सुनना पसंद नही वो बात हमे कोसना ही लगता है, शुरुआत में आप इशानी से ऐसी ही अप्रिय बाते करते थे जो उसे बुरी लगती थी, और उसने दूरी बना ली आपसे…." यमराज बोला।

"मतलब?????" नंदू अंकल ने पूछा।

"मतलब ये की आप इशानी को खाना पकाना सीखने की सलाह देते थे कहते थे कि कभी अगर पुष्पा ना आये तो एक दिन खाना पकाना पड़ेगा तो कैसे पकाओगी……उनके पास ऑप्शन है वो बाहर चले जायेंगे खाना खाने….वो बाहर से खाना मंगा लेंगे, लेकिन फिर भी आप बार बार एक ही बात ले पीछे पड़ जाते थे तो वो बात उसे अप्रिय लगने लगी, और वो आपके आसपास आने से कतराने लगी क्योकि उसे डर था कि अगर वो आपके पास आएगी आप फिर से उसे जलील करना शुरू कर दोगे….ठीक उसी तरह जैसे आज आपकी गलतियों पर वो आपको कर रही और आप जितना ज्यादा हो सके उन दोनों से बचकर रहने की कोशिश करते हो ताकि रात की बातें लेकर सूनाना ना शुरू कर दे।" यमराज ने समझाते हुए कहा।

"बस इतनी सी बात पर दूर कौन जाता है, चलो उसे तो मैं खाना पकाना सीखने की सलाह देता था उसमे गलत क्या है"  नंदू अंकल ने यमराज से कहा।

"सिर्फ इतनी सी बात नही है उसका घर पर सज धज के रहना भी तो तुम्हे चुभता था, तुम उसे कहते थे कि इतने कॉस्मेटिक आइटम लगाकर घर पर रहने की क्या जरूरत है, ये तो कभी बाहर जाने के लिए इस्तेमाल होता है, इनके ज्यादा इस्तेमाल से चेहरा भी खराब होगा और फिजूलखर्ची भी बढ़ेगी, घर में कौन देख रहा है तुम्हे" यमराज ने बताया।।

"लेकिन तुम तो यहाँ नही थे, तुम्हे ये बात कैसे पता" नंदू अंकल ने यमराज से सवाल किया।

यमराज ने उसके सवाल का जवाब बिना दिए अगली बात बताई जिसने इशानी को उससे दूर कर दिया- "पहली चाय का ट्रीट……उस दिन आपने समीर को पकड़ाई खुद पकड़ी, उसे एक बार पीने को नही बोला, उस दिन वो आपकी गलती नही उसकी गलत सोच थी ये तो मैंने मान लिया….लेकिन जब आप दिन में अपने लिए खुद चाय बनाते और पीने लगते थे तब आप उसे क्यो नही पूछते की बहू क्या वो भी चाय पीएगी"

"ये काम मेरा है कि उसका….चाय उसे बनानी चाहिए अपने और मेरे लिए, और जब एक दिन मैंने पूछा तो उसने मना कर दिया, अगली बार से मैंने पूछा ही नही" नंदू ने कहा।

"उस दिन उसका चाय पीने का मन नही था इस लिए मना कर दिया था, अगले दिन वो आपके चाय पीने के टाइम पर बाहर हॉल के सोफे में ही बैठी थी ताकि आप चाय बनाओ तो उसके लिए भी, आप उसको क्या बोलकर चाय बनाने गए थे याद है" यमराज ने कहा।

नंदू अंकल ने उस दिन को याद किया जिस दिन की याद यमराज दिलाना चाह रहा था नंदू और इशानी दोनो बाहर हॉल में ही थे….नंदू ने इशानी को सुनाते हुए कहा- "चाय बना लाता हूँ यार! मुझे ही बनाना पड़ेगा, बहु तो ऐसी मिली उसे चाय बनानी भी नही आती और सीखना भी नही चाहती"  कहकर नंदू अंदर गया और अपनी अपनी अकेले की चाय बना लाया, इशानी अब तक हॉल में बैठी थी, शायद चाय का इंतजार कर रही थी, लेकिन जब उसने देखा ससुरजी अपनी अपनी चाय बनाकर लाये है तो वो उठकर अपने कमरे की तरफ चली गयी।

"लेकिन मैंने तो ये सब उसे सुधारने के लिए कहा था, ताकि उसे शर्म आये और वो सीखने की कोशिश करे" नंदू अंकल ने यमराज से कहा।

"हां तो आज वो जो कह रही है आपको सुधारने के लिए कह रही है, अब आपको क्यो बुरा लग रहा है,  वो कौन सा आपको बिगाड़ने के लिए कह रही है। वो भी चाहती है की उसका कोई पहचान वाला फोन करके ये ना बोले कि उसका ससुर सड़क पर गिरा पड़ा है, और लोगो को भला बुरा कह रहा है" यमराज बोला।

अब यमराज और नंदू अंकल ने शर्मिंदा नंदू और उसको बाते सुना रहै समीर और इशानी की तरफ नजर फेरी….।
नंदू उठकर अपने कमरे की तरफ चला गया।

नंदू के जाने के बाद इशानी ने कहा- "मेरा तो सामान पैक कर दो… मैं नही रह सकती अब इनके साथ….बहुत सहन कर लिया, पहले इनकी घटिया बाते परेशान करती थी अब इनकी हरकते….क्यो ले आये इनको यहां, जहां पहले रहते थे वही कही कमरा दिला आते ना"

"इशानी प्लीज….मैं पहले बहुत परेशान हूँ, और मत करो, पापा सुधर जाएंगे, मैं बचपन से जानता हूँ उन्हें वो ऐसे कभी नही थे, ये सब उस शराबी शर्मा की वजह से हुआ है, उस दिन अगर मैंने पापा को उस कमीने के साथ ना बैठाया होता तो आज ये सब नही होता" समीर बोला।

"ये लो कर लो बात…. गलती हमारी है, कपल डान्स में एडजेस्ट कर लेना चाहिए था, तीनो मिलकर कर लेते डांस….….समीर मेरे भी बहुत फ्रेंड्स है जो सिगरेट पीती है, लेकिन मैंने कभी नही पी, मैं भी तो उनके साथ उठती बैठती हूँ" इशानी बोली।

"चलो बात यही खत्म करो….और आज पापा का खास ध्यान रखना……वो मार्केट जाने लगे तो टोक देना उन्हें, मार्केट जाने से मना करना और अगर ना माने तो मुझे फोन करके मेरी बात करा देना" समीर बोला।

"मेरे सिर पर खुजली हो रही क्या….मैं नही रोकटोक करने वाली….जहाँ मरता है मरने दो बुड्ढे को" इशानी ने कहा।

"इशानी……." जोर से चिल्लाते हुए समीर ने हाथ इशानी के गाल की तरफ घुमाया और एकाएक रुक गया, थप्पड़ मारते रुक सा गया।

इशानी को ये बात भी हर्ट कर गयी, इशानी दौड़कर अंदर कमरे की तरफ भागी और समान पैक करने लगी। समीर भी पिछे पीछे कमरे की तरफ आया।

कहानी जारी है


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5 Comments

Niraj Pandey

07-Oct-2021 02:00 PM

लाजवाब

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Seema Priyadarshini sahay

02-Oct-2021 11:05 PM

बहुत खूबसूरत

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Shalini Sharma

01-Oct-2021 01:11 PM

Nice

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